नव लोक प्रशासन
1960 के दशक में लोक प्रशासन की सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक कमियों ने एक नए विचार को जन्म दिया, जिसे New Public Administration कहते हैं, जिसमें नव लोक प्रशासन के उद्भव के लिए आन्तरिक व बाह्य कारक उत्तरदायी माने जाते हैं।
1960 के दशक में लोक प्रशासन की सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक कमियों ने एक नए विचार को जन्म दिया, जिसे New Public Administration कहते हैं, जिसमें नव लोक प्रशासन के उद्भव के लिए आन्तरिक व बाह्य कारक उत्तरदायी माने जाते हैं।
संगठन का अर्थ सामान्य बोलचाल की भाषा में हम यह कह सकते हैं कि किसी कार्य को योजनाबद्ध ढंग से करना ही संगठन है। “कार्य आरम्भ करने से पहले उसको भली प्रकार से नियोजित कर लिया जाए, इसी को संगठन कहते हैं।” ‘संगठन’ में तीन तत्व निहित हैं- यह कार्य किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति
संगठन का अर्थ, परिभाषा, संगठन के प्रकार Read More »
अरस्तू महान् दार्शनिक प्लेटो का महान् शिष्य था। अरस्तू के संपत्ति संबंधी विचार उसके गुरु प्लेटो के संपत्ति सिद्धांत का ही विस्तारित रूप है। गुरु-शिष्य के रूप में इन दो महान् दार्शनिकों का बीस वर्ष का सम्पर्क रहा। व्यक्तिगत रूप से पारस्परिक सद्भाव होने के बावजूद भी, इन दोनों के विचारों में बहुत गहरा अन्तर
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अरस्तू का न्याय सिद्धांत उसके महान गुरु प्लेटो के न्याय सिद्धांत का ही विस्तार रूप है। अरस्तू के महान् विद्वान गुरु प्लेटो ने ‘न्याय’ की अवधारणा को राज्य का जीवन और आधार माना था। अपने गुरु की भांति अरस्तू भी न्याय को राज्य का मूल आधार तत्व स्वीकार करता है और कहता है कि बिना
अरस्तू का न्याय सिद्धांत Read More »
प्लेटो के शिक्षा सिद्धांत की भांति अरस्तू का शिक्षा सिद्धांत भी महत्वपूर्ण और विचारणीय माना जाता है। प्लेटो की भांति अरस्तू को भी इस बात का दुःख था कि स्पार्टा जैसे नगर राज्य में शिक्षा की उत्तम योजना विद्यमान थी, किन्तु फिर भी एथेन्स ने उसका अनुसरण नहीं किया। अतः दोनों के चिन्तन में अपने
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“वे संविधान, जो पूर्ण न्याय की दृष्टि से सामान्य हित का ध्यान रखते हैं, शुद्ध संविधान हैं। वे संविधान, जो केवल शासकों के व्यक्तिगत हित को ध्यान में रखते हैं, विकृत संविधान हैं या शुद्ध संविधान के विकृत रूप हैं।”—अरस्तू अरस्तू द्वारा संविधानों का वर्गीकरण राजनीति विज्ञान की कोई मौलिक देन नहीं है। उसने प्लेटो
अरस्तू के संविधानों का वर्गीकरण Read More »
इस कथन में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि पश्चिमी जगत में राजनीतिक विज्ञान अरस्तू से ही प्रारम्भ हुआ। यद्यपि अरस्तू के पूर्व प्लेटो ने राजनीति पर विचार किया था, किन्तु उसका सम्पूर्ण ज्ञान कल्पना पर आधारित है। वह अपने कल्पनालोक में ही खोया रहता है और वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं रखता। प्लेटो की पद्धति
अरस्तू : राजनीति विज्ञान का जनक Read More »
गुजराल सिद्धान्त भारत की विदेश नीति का एक मील का पत्थर है। इसका प्रतिपादन वर्ष 1996 में तत्कालिक देवगौड़ा सरकार के विदेश मन्त्री आई. के. गुजराल ने किया था। यह सिद्धान्त इस बात की वकालत करता है कि भारत दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा देश होने के नाते अपने छोटे पड़ोसियों को एकतरफा रियायतें दे।
कौटिल्य राज्य की उत्पत्ति के सम्बन्ध में समझौता सिद्धान्त को मानते हुए राज्य के सात अंगों को स्वीकार करते हैं, जिनको वह प्रकृति की संज्ञा देते है। राज्य के सात अंगों के कारण ही राज्य की प्रकृति के सम्बन्ध में कौटिल्य का सिद्धान्त सप्तांग सिद्धान्त कहलाता है। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र के छठे ग्रंथ के पहले
कौटिल्य का सप्तांग सिद्धान्त Read More »
भारतीय संविधान अपने मूल भावना के संबंध में अद्वितीय है। हालांकि इसके कई तत्व विश्व के विभिन्न संविधानों से उधार लिये गये हैं। भारतीय संविधान के कई ऐसे तत्व हैं, जो उसे अन्य देशों के संविधानों से अलग पहचान प्रदान करते हैं। भारतीय संविधान की विशेषताएं संविधान के वर्तमान रूप में इसकी विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
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