अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का अर्थ, परिभाषा, स्वरूप और विषय क्षेत्र

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का अर्थ:
मुख्य रूप से राष्ट्रों के मध्य पाई जाने वाली राजनीति को अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की संज्ञा प्रदान की जाती है। यदि राजनीति के अर्थ का अध्ययन करें तो इसके अंतर्गत तीन प्रमुख बातें सामने आती हैं- 1) समुदायों का अस्तित्व, 2) समुदायों के बीच मतभेद, 3) कुछ समुदायों द्वारा अन्य समुदायों के कार्यों को प्रभावित करने का प्रयास। जब इन्हीं बातों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाता है, तब ये तीन बातें सामने आती हैं- 1) राज्यों का अस्तित्व, 2) राज्यों के बीच मतभेद, 3) कुछ राज्यों द्वारा अन्य राज्यों के कार्यों को प्रभावित करने का प्रयास। इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में विभिन्न राष्ट्र अपने हित साधन के लिए अपने शक्ति के आधार पर संघर्ष की जिस स्थिति में रहते हैं, उसी का अध्ययन अंतर्राष्ट्रीय राजनीति कहलाता है।

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की परिभाषाएं : अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की परिभाषा को लेकर विद्वानों में काफी मतभेद हैं। कतिपय प्रमुख लेखकों द्वारा व्यक्त परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

1) थॉम्पसन के अनुसार “राष्ट्रों के बीच छिड़ी प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ उनके पारस्परिक संबंधों को सुधारने या बिगाड़ने वाली परिस्थितियों और संस्थाओं के अध्ययन को अंतरराष्ट्रीय राजनीति कहते हैं।”
2) फेलिक्स ग्राॅस के अनुसार “अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का अध्ययन वास्तव में विदेश नीतियों के अध्ययन के अतिरिक्त कुछ नहीं है।”
3) हैंस जे. मार्गेंथाऊ के अनुसार “अंतर्राष्ट्रीय राजनीति शक्ति के लिए संघर्ष है।”

स्वरूप:
1) अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के विषय में विभिन्न बदलाव के बाद भी आज भी इसका मुख्य केन्द्र बिन्दु राज्य ही है। मूलतः अंतर्राष्ट्रीय राजनीति राज्यों के मध्य अन्तः क्रियाओं पर ही आधारित होती है प्रत्येक राज्यों को अपने राष्ट्र हितों की पूर्ति हेतु अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की सीमाओं में रह कर ही कार्य करने पड़ते हैं। परन्तु इन कार्यों के करने हेतु विभिन्न राज्यों में संघर्षात्मक व सहयोगात्मक दोनों ही प्रकार की प्रतिक्रियाएँ होती हैं। इन्हीं प्रतिक्रियाओं और इनसे जुड़े अन्य पहलुओं का अध्ययन ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन की प्रमुख सामग्री होती है।

2) अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का दूसरा महत्वपूर्ण कारक शक्ति का अध्ययन है। द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत कई दशकों तक विशेषकर शीतयुद्ध काल में, यह माना गया कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का प्रमुख उद्देश्य शक्ति संघर्षों का अध्ययन करना मात्र ही है। परन्तु पूर्ण रूप से यह सत्य नहीं है। शायद इसीलिए हम देखते हैं कि शीतयुद्धोत्तर युग में शक्ति संघर्ष के साथ-साथ आर्थिक, सामाजिक सांस्कृतिक आदि संबंध भी उतने ही महत्वपूर्ण बन गये हैं । हां इस तथ्य को भी पूर्ण रूप से नहीं नकार सकते कि शक्ति आज भी अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन का एक महत्वपूर्ण कारक है।

3) अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का एक अन्य कारक अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का अध्ययन भी है। आधुनिक युग राज्यों के बीच बहुपक्षीय संबंधों का युग है। राज्यों के इन बहुपक्षीय संबंधों के संचालन में अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। ये अंतर्राष्ट्रीय संगठन राज्यों के मध्य आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक, सैन्य, सांस्कृतिक आदि क्षेत्रो में सहयोग के मार्ग प्रस्तुत करते हैं। वर्तमान संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र,विश्व बैंक, मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन,विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनेस्को आदि जैसे संगठन अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन का प्रमुख हिस्सा बन गए हैं।

4) युद्ध व शान्ति की गतिविधियों का अध्ययन भी आज अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का अभिन्न अंग बन गया है यह सत्य है कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति न तो पूर्ण रूप से सहयोग और न ही पूर्ण रूप से संघर्षों पर आधारित है। अतः मतभेद व सहमति अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के सहचर हैं। इन दोनों की उपस्थिति का अर्थ है यहां युद्ध व शान्ति दोनों की प्रक्रियाएँ विद्यमान हैं। विभिन्न मुद्दों पर आज भी राष्ट्रों ने युद्ध के विकल्प को नहीं त्यागा है। शीतयुद्ध के साथ-साथ राज्यों के बीच प्रत्यक्ष युद्ध आज भी हो रहे हैं। इसीलिए युद्धों को रोकने हेतु शान्ति प्रयासों पर भी अत्यधिक बल दिया जाता है। इसीलिए इन युद्ध व शान्ति के पहलुओं का अध्ययन करना ही अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का प्रमुख भाग बन गया है।

5) अंतर्राष्ट्रीय राजनीति वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से राज्य अपने राष्ट्रीय हितों का संवर्धन एवं अभिव्यक्ति करते हैं। यह प्रक्रिया केवल एक समय की न होकर निरन्तर चलती रहती है। इस प्रक्रिया का प्रकटीकरण राज्यों की विदेश नीतियों के माध्यम से होता है। अतः अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन में विदेशी नीतियों का आकलन एक अभिन्न अंग बन गया है।

6) राष्ट्रों के मध्य सुचारू, सुसंगठित एवं सुस्पष्ट संबंधों के विकास हेतु कुछ नियमावली का होना अति आवश्यक होता है। अतः राज्यों के परस्पर व्यवहार को नियमित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के सुचारू स्वरूप एवं भविष्य के दिशा निर्देश हेतु भी इनकी आवश्यकता होती है।

7) राज्यों की गतिविधियों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक मुद्दों का अध्ययन भी काफी महत्वपूर्ण रहा है। परन्तु शीतयुद्ध के संघर्षों के कारण 1945-91 तक राजनैतिक मुद्दे ज्यादा अग्रणीय रहे तथा आर्थिक मुद्दे कमजोर हो गए। वर्तमान भूमण्डलीकरण के दौर में ज्यादातर राज्य आर्थिक सुधारों, उदारवाद, मुक्त व्यापार आदि के दौर से गुजर रहे है। ऐसी स्थिति में आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन अति महत्वपूर्ण हो गया है।

8) अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के वर्तमान स्वरूप से यह स्पष्ट है कि अब इस विषय के अंतर्गत राज्यों के अतिरिक्त गैर सरकारी संगठनों की भूमिकाएं भी महत्वपूर्ण होती जा रही हैं। दूसरा अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के बढ़ते विषय क्षेत्र के साथ-साथ इसमें कार्यरत संस्थाओं एवं संगठनों का विकास भी हो रहा है। तीसरा, अब अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अंतर्गत कई महत्वपूर्ण मुद्दे भी आ रहे हैं, जो मानवता हेतु ध्यानाकर्षण योग्य बन गए हैं। इन सभी कारणों से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन का दायरा भी विकसित होता जा रहा है। आज इसमें राजनैतिक ही नहीं बल्कि गैर-राजनीतिक विषय जैसे पर्यावरण, नारीवाद, मानवाधिकार, ओजोन परत क्षीण होना, मादक द्रवों की तस्करी, गैर कानूनी व्यापार, शरणार्थियों व विस्थापितों की समस्याएँ आदि भी महत्वपूर्ण हिस्सा बनते जा रहे हैं इसके साथ-साथ गैर-सरकारी संस्थानों (एन.जी.ओ. ) की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती जा रही है।

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क्षेत्र (Scope) :
संक्षेप में, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की विषय क्षेत्र को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है।

(1) अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रधान-पात्र(main actor) राज्य का अध्ययन: अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रमुख पात्र(actor) राज्य होते हैं और इसके अन्तर्गत राज्यों के वाहरी व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। राज्यों के आपसी संबंध बड़े जटिल और कई प्रकारों के तत्वों; जैसे भू-राजनीतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक, वैचारिक, सामरिक तत्वों से प्रभावित होते हैं। प्रत्येक देश का अपना भौगोलिक महत्व होता है और उसके अनुरूप ही देश को दूसरे पड़ोसी राज्यों के साथ सम्बन्ध रखने होते हैं। उदाहरणार्थ, भारत के पड़ोसी देश हैं- पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, वर्मा तथा श्रीलंका और इसी कारण भारत का सामरिक दृष्टि से विशेष महत्व है। दूसरी तरफ भारत के लिए भी ये सारे देश विशिष्ट महत्व रखते हैं। कहने का तात्पर्य है कि अन्तराष्ट्रीय राजनीति अन्तर्राज्यीय सम्बन्धों के अध्ययन पर बल देती है।

(2)शक्ति (Power) के अध्ययन पर बल: अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में जितना अधिक बल शक्ति पर दिया गया है, उतना कदाचित किसी और विषय में नहीं दिया गया है। प्रो. हैंन्स जे. मॉर्गेन्थाऊ ने लिखा है-“अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति प्रत्येक राजनीति की भाँति शक्ति-संघर्ष है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का अन्तिम लक्ष्य चाहे जो कुछ भी हो, शक्ति सदैव तात्कालिक लक्ष्य रहती है।” वस्तुतः अन्तर्राष्ट्रीय जगत में सभी राज्य शक्ति के उपार्जन के लिए प्रयत्नशील होते हैं और शक्ति का दृष्टिकोण ही उनकी विदेश नीति की रचना में सबसे अधिक निर्णायक भूमिका अदा करता है।

(3) अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं तथा संगठनों का अध्ययन: आधुनिक युग में राज्यों के सम्बन्ध द्विपक्षीय न होकर बहुपक्षीय बनते जा रहे हैं और राज्यों के बहु-पक्षीय सम्बन्धों के संचालन में अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय संगठन राज्यों के आपसी सहयोग के महत्वपूर्ण मंच माने जाते हैं । राज्यों के मध्य आर्थिक, सैनिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग की वृद्धि करने हेतु ही अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का निर्माण किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना ने अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के महत्व को बढ़ाने में एक बड़ा योगदान दिया है। आज संयुक्त राष्ट्र संघ ही एकमात्र अन्तर्राष्ट्रीय संगठन नहीं है, अपितु अब अनेक प्रकार के प्रादेशिक संगठनों की भी स्थापना हो चुकी है । ये सभी संस्थाएँ अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक महस्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं :

आर्थिक- पूरोपियन साझा बाजार, विश्व बैंक, कोलम्बो योजना आदि ।
सैनिक- नाटो, सीटो, वार्सा पैक्ट, सेण्टो आदि ।
राजनीतिक- राष्ट्र संघ, संयुक्त राष्ट्र संघ आदि ।
प्रादेशिक- अरब लीग, अमरीकी राज्यों का संगठन, अफ्रीकी एकता संगठन आदि । सांस्कृतिक और अन्य- यूनेस्को, अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन आादि ।

(4) युद्ध एवं शान्ति की गतिविधियों के अध्ययन पर बल: अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति विषय युद्ध एवं शान्ति के प्रश्नों से सम्बन्धित है । विभिन्न राष्ट्रों के बीच गम्भीर आपसी मामलों के समाधान हेतु कभी-कभी युद्ध हो जाना स्वाभाविक है। हम सभी जानते हैं कि अब तो राष्ट्रों से मध्य बिना बन्दूक चलाये भी युद्ध हो जाते हैं : आर्थिक प्रतिबन्धों के द्वारा राष्ट्र एक-दूसरे के विरुद्ध आर्थिक युद्ध लड़ सकते हैं। युद्ध की परम्परा में ‘शीत युद्ध’ ने निःसन्देह एक नया आयाम जोड़ा है। शीत-युद्ध एक प्रकार का स्नायु युद्ध (War of nerv) है।अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति अधिकांशतः युद्ध एवं शान्ति के प्रश्नों के इर्द-गिर्द चक्कर काटती रहती है ।

(5) विदेश नीति निर्माण की प्रक्रिया का अध्ययन: अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से विभिन्न राष्ट्र अपने हितों की रक्षा करने का प्रयत्न करते हैं। क्योंकि यह प्रक्रिया राज्यों की नीति के माध्यम से ही काम करती है, इसलिए विदेश नीति के अघ्ययन से अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन की मांग किसी हद तक पूरी हो जाती है ।

पूर्व में विदेश नीति की विषय-वस्तु (The Content) के अध्ययन पर ही बल दिया जाता था, किन्तु वर्तमान में विश्लेषणात्मक पद्धति पर जोर देने के कारण विदेश नीति की निर्माण प्रक्रिया के अध्ययन पर अधिक बल दिया जाने लगा है। उदाहरण के लिए, भारत की विदेश नीति को तब तक नहीं समझा जा सकता जब तक कि भारत के ऐतिहासिक अनुभवों और शासन-प्रणाली की पेचीदगियों को न समझा जाये। भारत की विदेश नीति का निर्माण प्रधानमन्त्री गौर विदेश मन्त्री ही नहीं करते अपितु यह एक लम्बी प्रक्रिया का परिणाम होती है, जिसमें विदेश मंत्रालय, विभिन्न राजनयिकों, संसद, समाचार-पत्रों, राजनीतिक दलों, विश्वविद्यालयों तथा अनुसन्धान कर्ताओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

(6) अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अध्ययन पर बल: स्वतन्त्र राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों का संचालन करने में अन्तर्राष्ट्रीय कानून का बड़ा महत्व है। जिस प्रकार समाज में व्यक्ति बिना नियमों, कानूनों एवं रीति-रिवाजों के नहीं रह सकता, उसी प्रकार कोई भी राज्य बिना अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के अन्य राज्यों से अपने विभिन्न प्रकार के सम्बन्ध नहीं बना सकता । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अध्ययन पर बल देने घाला विषय है ।

(7) विदेशी व्यापार एवं अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठनों का अध्ययन: राज्यों के आर्थिक हित राजनीतिक क्रिया-कलापों को प्रभावित करते हैं । विदेश व्यापार राज्यों के राजनीतिक सम्बन्धों को घनिष्ठ बनाता है। विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय नियम विदेशी व्यवसाय को नियन्त्रित करते हैं । विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता, व्यापार और भुगतान समझौते, कार्टेल्स का प्रयोग आदि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के विद्यार्थी की अभिरुचि के विषय हैं ।

(৪) सैनिक संगठनों लौर राजनीतिक गुटों का अध्ययन: द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् साम्यवादी गुट, स्वतन्त्र समाज, गुटनिरपेक्ष राज्य, अरब समुदाय, अफीकी देश जैसे अनेक राजनीतिक गुट अस्तित्व में आये हैं। ये राजनीतिक गुट संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच पर अथवा उसके बाहर अनेक मामलों पर मिल जुलकर कार्य करते हैं। इन गुटों को जोड़ने वाले तत्वों, उनके मतभेदों तथा विवादों का अध्ययन अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की विषय वस्तु के अन्तर्गंत आता है।

जब ये राजनीतिक समुदाय अपने सदस्यों के बीच सैनिक सन्धियाँ कर लेते हैं तो ये सैनिक गुट का रूप ग्रहण कर लेते हैं । नांटो, सीटो, वार्साउ पैक्ट, सैंण्टो आदि कतिपय ऐसे ही सैनिक गुट हैं। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का घ्येय उन कारणों का अध्ययन करना है जिनके परिणाम स्वरूप सैनिक गुटों का निर्माण किया गया है; सैनिक गुटों से विश्व में शक्ति-सन्तुलन किस प्रकार प्रभावित हुआ है तथा विश्व-शान्ति की समस्या से ये गुट किस प्रकार संबंधित हैं आदि।

इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन की सीमा में छोटे-बड़े कई प्रकार के विषय शामिल किये जाते हैं ।