धर्म और नैतिकता पर मैकियावेली के विचार
मैकियावेली ने राजनीति को धर्म और नैतिकता से अलग किया। आधुनिक युग का आरंभ करने वाले पुनर्जागरण के प्रतिनिधि के रूप में वही सबसे पहला विचारक था, जिसने ऐसा किया। हम लोग धर्म और नैतिकता के संबंध में उसके विचारों को देखते हुए यह समझने का प्रयास करेंगे कि किस तरह धर्म और नैतिकता राजनीति से अलग और पृथक बताई गई है।
धर्म(religion) – मैकियावेली एक सामाजिक और राजनीतिक व्यक्ति था। अतः जन्म से रोमन कैथोलिक होने के बावजूद उसने धार्मिक बुराइयों के कारण ईसाई धर्म, चर्च तथा पोप का विरोध किया। उसके शब्दों में “अच्छे मनुष्य ईसाई धर्म के चलते अत्याचारी और अन्याय मनुष्यों के शिकार हो गए हैं।” उसके अनुसार इटली के निवासी पोप शाही के भ्रष्टाचार की वजह से धर्म भावना और नैतिकता खो चुके थे। चर्च ने इटली को छोटे-छोटे टुकड़ों में विभक्त कर दिया था। इटली की राजनीतिक एकता समाप्त हो गई थी। पोप शासन और शांति स्थापित करने में असफल था। अतः उसने ईसाई धर्म, चर्च तथा पोप की स्पष्ट शब्दों में विरोध किया। वह एक व्यवहारिक सूझबूझ का व्यक्ति था। अतः धर्म के प्रति उसने व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाया। स्ट्रास(Strauss) ने लिखा है कि “मैकियावेली के अनुसार धर्म परिस्थितियों के मुताबिक आचरण करने में है, ना कि ईश्वर के अपरिवर्तनशील नियमों का पालन करने में।”
मैक्यावेली ने धर्म को राज्य की लक्ष्य सिद्धि के एक साधन के रूप में स्वीकार किया है, उसके अनुसार धर्म राज्य से श्रेष्ठ नहीं, बल्कि राज्य के नियंत्रण के अधीन है। उसने चर्च को राज्य का अंग कहा और शासन को यह सलाह दी कि वरदान को माध्यम बनाकर अपनी संगठन और नियंत्रण शक्ति में वृद्धि कर सकता है। उसने विचार व्यक्त किया है कि शासक को धार्मिक सिद्धांतों और विश्वास हम के सत्यासत्य से प्रयोजन नहीं रखना चाहिए। सांसो के धार्मिक सिद्धांतों का प्रचार करके सभी व्यक्तियों को एकता सूत्र में बांध सकता है। धर्म एक साधन मात्र है साथ ही नहीं।
परंतु हमें यह नहीं समझना चाहिए कि मैकियावेली में कुछ भी धर्म भावना नहीं थी। वह पैगनवाद(paganism) का समर्थक था, जो उसके मत में ओज, शक्ति, दृढ़ता और पराक्रम आदि गुणों पर जोर देता है। उसने विश्वव्यापी ईसाई धर्म को अस्वीकार किया है, धर्म को नहीं, जैसा कि कैटलिन का कहना है। इस संबंध में मैकियावेली के डिसकोर्सेज में निम्नलिखित शब्द उल्लेखनीय हैं – “राज्य से धर्म का सर्वाधिक प्रभाव होना चाहिए। इटली का पतन इस प्रभाव के अभाव के कारण ही हुआ। भ्रष्टाचार से मुक्ति की इच्छा रखने वाले राजा और गणतंत्र को धर्म की रक्षा करनी चाहिए तथा उसके प्रति सम्मान के भाव दिखाने चाहिए।” इन शब्दों से यह अर्थ निकलता है कि मैकियावेली की धर्म विषयक धारणा सामान्य धारणा से बिल्कुल अलग थी। उसकी धारणा वस्तुत: दार्शनिक थी, सामान्य में नहीं।
नैतिकता(morality and ethics) – धर्म और नैतिकता में गहरा संबंध होता है। अतः मैक्यावली ने धर्म के साथ साथ नैतिकता के संबंध में भी एक भिन्न दृष्टिकोण अपनाया है। उसने नैतिकता का अर्थ लाभदायकता से लिया है। उसकी अनुसार यदि कोई कार्य या वस्तु राज्य के लिए लाभदायक और उपयोगी है तो उसे नैतिक मानना चाहिए। ठीक इसके विपरीत यदि उसे राज्य का अहित होता है तो उसे अनैतिक करार किया जाना चाहिए। इससे स्पष्ट है कि मैं किया रैली में नैतिकता को राज्य के हित का एक साधन माना है। उसने ऐसा राजा को यह अधिकार प्रदान किया है कि वह अपने साध्य की प्राप्ति के लिए कोई भी साधन अपना सकता है। शासक की सफलता और उसके लक्ष्य की सिद्धि ही, मैकियावेली के अनुसार शासक द्वारा बनाए गए साधनों के औचित्य की कसौटी है।
उपर्युक्त बातों से जाहिर है कि मैकियावली की नैतिकता की धारणा सामान्य जनता और व्यक्ति की नैतिकता विषयक धारणा के सर्वथा विपरीत थी। सामान्यतया जिसे अनैतिक माना जाता है, वह मैकियावेली के राज्य दर्शन में राजा की लक्ष्य सिद्धि के कारण नैतिक हो जाता है। दूसरे शब्दों में, मैकियावेली के अनुसार साध्य साधन के औचित्य को बतलाता है। शासक अथवा राजा चाहे जैसा भी हो जनता को उसकी आज्ञा का पालन करना चाहिए। राजा विजय प्राप्त करने तथा राज्य की सुरक्षा के लिए जो भी साधन अपनाता है उसे सदैव आदर और प्रशंसा मिलती रहनी चाहिए।
मैकियावेली ने सहायक अथवा राजा के लिए बाघ लोमड़ी नीति ( lion and wolf theory) का उल्लेख किया है। उसके अनुसार से चालाक ना होने के कारण जाल में फंस जाता है। लोमड़ी बलवान ना होने के कारण भेड़िए का शिकार बन जाती है। कथा वाचक को शेर की भांति बली और लोमड़ी की भांति चालाक होना चाहिए। वह अपनी सफलता के लिए साम-दाम-दंड-भेद, झूठ, धोखा, पाखंड आदि जैसी कोई भी तरीके को अपना सकता है। इस तरह स्पष्ट है कि मैं की हवेली में नैतिकता और अनैतिकता में कोई फर्क नहीं किया है। उसने केवल साथी को ध्यान में रखा है। शांति की प्राप्ति के लिए शासक नैतिक, अनैतिक, धार्मिक, अधार्मिक कोई भी साधन अपना सकता है।
राजनीति को धर्म और नैतिकता से प्रथक रखने के कारण
(1) हम देखते हैं कि मैकियावेली ने मानव स्वभाव के संबंध में प्लेटो और अरस्तू के मतों तथा उन सारे सिद्धांतों का खंडन किया है जो मनुष्य के सामाजिक स्वभाव को राज्य की उत्पत्ति का कारण बतलाते हैं। प्लेटो ने यह माना कि मनुष्य स्वभाव से सद्गुणी होता है। अरस्तु ने यह कहा कि मनुष्य में शुभ अशुभ तथा न्याय अन्याय में अंतर करने की क्षमता होती है। इन विचारों के विपरीत मैकियावेली का कहना है कि मनुष्य स्वभाव से शब सद्गुणों से विहीन होकर स्वार्थी, कपटी और लोभी होता है तथा उसमें भला, बुरा में भेद करने की क्षमता नहीं होती।
(2) – मैकियावेली ने यह माना है कि मनुष्य के सामाजिक सद्गुण केवल स्वार्थ के बदलते हुए रूप है। उसकी प्रेरक शक्तियां अहमपूर्ण और स्वार्थपूर्ण होती हैं। वह नीति और परामर्श की बात नहीं सोचता है। अतः शासक को इस रुप में शक्तिशाली होना चाहिए कि वह मानव स्वभाव पर नियंत्रण रख सके। उसे नीति, धर्म और आदर्शवादिता पर भरोसा नहीं करना चाहिए।
(3) – शासक को, मैकियावेली के मत में, शासितों के बीच प्रेम के बजाय भय उत्पन्न करना चाहिए। उसे अपनी शक्ति द्वारा लोगों को नियंत्रित और अनुशासित रखना चाहिए। प्रेम को अपनाकर वह धोखा खा सकता है, परंतु शक्ति को हाथ में लेकर वह धोखा नहीं खा सकता।
(4) – प्लेटो और अरस्तू ने अपनी शिक्षा योजनाओं के जरिए मनुष्यों को सदगुण संपन्न बनाने की कोशिश की। परंतु मैकियावेली के राजदर्शन में मनुष्य अपनी अंतर्निहित बुराइयों के कारण युग युगांतर तक ज्यों का त्यों बना रहता है। केवल शक्ति और दमन द्वारा उसके स्वभाविक दोषों को नियंत्रित किया जा सकता है।