हाॅब्स का व्यक्तिवाद

 

हाॅब्स का व्यक्तिवाद  (Hobbes’s individualism)

 

हरमन का कथन है कि “यद्यपि हाॅब्स उन प्रतिबंधों को स्वीकार करता है, जिन्हें संप्रभु, व्यक्ति पर आरोपित कर सकता है तथापि उसके सिद्धांत में व्यक्तिवाद के शक्तिशाली तत्व मौजूद हैं। सेबाइन के अनुसार “लाॅक का पूर्वगामी होने के चलते हाॅब्स को पहला दार्शनिक माना जाता है, जिसके दर्शन में व्यक्तिवाद का आधुनिक तत्व मिलता है।” वेपर के शब्दों में, “सबसे बड़ी निरपेक्षवादी के रूप में प्राय: चित्रित हाॅब्स राजनीतिक चिंतन के इतिहास में शायद सबसे बड़ा व्यक्तिवादी है।”

जब हम हाॅब्स के राजनीतिक दर्शन पर विचार करते हैं, तो पाते हैं कि उपरोक्त विद्वानों के कथन पूर्णतया सार्थक हैं। संप्रभु की असीम और निरपेक्ष शक्ति के सिद्धांत से जुड़े हुए हाॅब्स ने वस्तुतः शासक की निरपेक्षता और सर्व शक्ति को प्रधानता नहीं दी है। उसका शक्ति सिद्धांत, जैसा कि प्रोफ़ेसर सेबाइन कहते हैं व्यक्तिवाद का अनिवार्य पूरक है। इस संबंध में निम्नलिखित बातें उल्लेखनीय है:

(1) हाॅब्स के संपूर्ण दर्शन में व्यक्तिवाद की व्याप्ति व्यक्तिवाद मनुष्य की सामूहिक जीवन और सामाजिक कल्याण के विरुद्ध प्रत्येक मनुष्य को पृथक पृथक इकाई के रूप में देखते हुए हर व्यक्ति की इच्छा तथा स्वतंत्रता पर जोर देता है। जब हम हाॅब्स के राजनीतिक दर्शन पर दृष्टि डालते हैं, तो पाते हैं कि उसकी संपूर्ण दर्शन पर व्यक्तिवाद की छाप है। हाॅब्स ने अपना दर्शन उस प्राकृतिक अवस्था से प्रारंभ किया है, जिसमें व्यक्ति प्रथक प्रथक रहते थे। हाॅब्स के समझौता में व्यक्ति ही प्रधान है। प्रत्येक व्यक्ति ने प्रत्येक व्यक्ति के साथ समझौता किया। हाॅब्स ने संप्रभु को समझौते में शामिल न करके अपने व्यक्तिवाद को समर्थन दिया।

(2) समाज और राज्य व्यक्तिगत उद्देश्य के साधन व्यक्तिवादी हाॅब्स ने समाज और राज्य को व्यक्तिगत उद्देश्य का साधन माना है। उसके दर्शन में उद्देश्य व्यक्ति है, न कि समाज या राज्य। राज्य और उसके कानून तभी तक औचित्य रखते हैं, जब तक व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करते हैं। सेबाइन ने स्पष्ट रूप में लिखा है कि हाॅब्स के दर्शन में “सामाजिक कल्याण पूर्णतया गायब हो जाती है, तथा इसके स्थान पर प्रथक – प्रथक स्वार्थों के कुल योग की स्थापना होती है। यही प्रत्यक्ष व्यक्तिवाद हाॅब्स के दर्शन को इस युग का सर्वाधिक क्रांतिकारी सिद्धांत बना देता है।”

(3) सुरक्षा के लिए व्यक्तियों को क्रांति का अधिकार हाॅब्स का राजनीतिक दर्शन व्यक्तियों को अपने जीवन की सुरक्षा के लिए संप्रभु के विरुद्ध क्रांति का अधिकार प्रदान करता है। हाॅब्स का संप्रभु तभी तक वैद्य है, जब तक वह राज्य के व्यक्तियों को सुरक्षा देता है। संप्रभु किसी व्यक्ति को आदेश नहीं दे सकता कि वह अपने जीवन का अंत कर ले। उसने सुरक्षा के हित में क्रांति का अधिकार देकर अपने व्यक्तिवादी विचार का प्रतिपादन किया है।

(4) हाॅब्स उदारवादी या प्रजातंत्रवादी नहीं बल्कि, व्यक्तिवादी हाॅब्स के दर्शन में व्यक्तिवाद की व्याप्ति देखते हुए उसे उदारवाद अथवा लोकतंत्र का समर्थक माने लेना ठीक नहीं है। वेपर के शब्दों में “हाॅब्स उदारवादी या लोकतंत्रवादी नहीं बल्कि एक व्यक्तिवादी था, जिसका कारण यह भी नहीं है कि वह व्यक्ति की पवित्रता में विश्वास करता है, बल्कि यह है कि वह संसार को व्यक्तियों से बना हुआ तथा हमेशा व्यक्तियों से ही बना रहने वाला मानता है।”

(5) राज्य में केवल संप्रभु और व्यक्ति हाॅब्स का व्यक्तिवाद इस बात से भी सिद्ध होता है कि उसके राज्य में संप्रभु और व्यक्तियों के अतिरिक्त किसी भी अन्य सत्ता को स्वीकृति नहीं मिलती। व्यक्ति अलग अलग अपनी इच्छाओं से प्रेरित होते हैं, जिन्हें शासन और नियंत्रण में बांधने वाली शक्ति संप्रभु है जो स्वयं एक व्यक्ति है।

(6) आर्थिक क्षेत्र में हस्तक्षेप आधुनिक युग के व्यक्तिवादियो ने आर्थिक क्षेत्र में हस्तक्षेप की नीति का समर्थन किया। इस व्यक्तिवादी नीति की कसौटी पर भी हाॅब्स का राजनीतिक दर्शन खरा उतरता है। हाॅब्स ने स्पष्ट कहा है कि उसके राज्य में व्यक्तियों को खरीदने, बेचने , आर्थिक संविदा करने तथा निवास स्थान, भोजन और जीवन का व्यवसाय चुनने का अधिकार रहेगा। उसने आर्थिक क्षेत्र में अहस्तक्षेप की नीति का विचार दिया, जो आधुनिक व्यक्तिवादियों के विचार से पूर्णत: मेल खाता है।

(7) व्यक्तियों की स्वतंत्रता हाॅब्स के दर्शन को यथार्थत: न समझनु वाले कुछ लोग उसे निरंकुशतावाद और तानाशाही का समर्थक कहते हैं। परंतु हाॅब्स पर ऐसे आरोप लगाना उचित नहीं। उसने व्यक्तियों की मूलभूत स्वतंत्रताओं को संप्रभु से अछूता रखा है। उसके अनुसार राज्य का व्यक्ति संप्रभु के उस आदेश का उल्लंघन करने के लिए स्वतंत्र होगा, जिसमें उसके स्वयं के जीवन का अंत करने अथवा जीवन को कायम रखने वाली वस्तुओं का प्रयोग न करने को उससे कहा गया हो। दूसरी बात यह है कि हाॅब्स के राज्य में जहां कानून मौन हो वहां व्यक्ति खुले रुप में अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करता है। तीसरा, संप्रभु किसी कायर व्यक्ति को युद्ध के क्षेत्र में जाने का आदेश नहीं दे सकता और साथ ही वह उस व्यक्ति को भी युद्ध क्षेत्र में जाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता, जो किसी कारण से अपने बदले किसी दूसरे को भेज रहा हो। साथ ही हाॅब्स ने अपने राज्य के सभी व्यक्तियों को खरीदने, बेचने और संविदा करने में स्वतंत्रता प्रदान की है। सभी व्यक्ति अपने बच्चों को शिक्षित करने के क्षेत्र में भी स्वतंत्र बताए गए हैं। उसने संप्रभु को व्यक्तिगत विश्वासों की जांच पड़ताल का अधिकार नहीं दिया है।

ऊपर की समस्त चर्चा से यह सिद्ध हो जाता है कि असीमित सत्ता का समर्थक होने पर भी हाॅब्स मूलतः व्यक्तिवादी है। व्यक्तिवादी की छाप उसके समूचे राजनीतिक दर्शन पर देखने को मिलती है। उसने लिखा है कि जिस प्रकार घेरों का उद्देश्य यात्रियों को रोकना नहीं बल्कि मार्ग देना होता है, उसी प्रकार राज्य में कानूनों के प्रयोग का उद्देश्य सभी ऐच्छिक क्रियाओं पर रोक लगाना नहीं, अपितु लोगों को असावधानी और उतावलेपन में अपनी बर्बादी करने से बचा कर सही मार्ग प्रदान करना है।

 

आलोचना और मूल्यांकन

आपके व्यक्तिवाद के विरुद्ध निम्नलिखित आलोचनाएं उल्लेखनीय है-

(1) आलोचकों के अनुसार, हाॅब्स ने अपने राजनीतिक दर्शन में जानबूझकर व्यक्तिवादी तत्वों को प्रमुखता नहीं दिया है। वह एक सर्वसत्तावादी राज्य की रचना करना चाहता था।

(2) हाॅब्स का व्यक्तिवाद, आलोचकों के मध्य में, उसके भौतिकवाद का परिणाम है न कि एक राजनीतिक विषय के रूप में व्यक्ति में दिलचस्पी का।

(3) आलोचकों के अनुसार, हाॅब्स का व्यक्तिवाद राज्य के व्यक्तियों के लिए लाभकारी तब होता, जब संप्रभु को सामाजिक समझौते में सम्मिलित करके उससे कुछ शर्तें स्विकार कराई गई होती।

(4) यह बात सही है कि हाॅब्स ने राज्य के व्यक्तियों के लिए कुछ महत्वपूर्ण स्वतंत्रताओं का जिक्र किया है, परंतु जिस लेवायाथन अथवा संप्रभु को उसके कानून निर्माण की शक्ति दी है, वह दार्शनिक प्रतिबंधों को मानने के लिए तैयार नहीं भी हो सकता।

(5) हाॅब्स का व्यक्तिवाद प्रशंसा और उल्लेख का पात्र बन जाता, जबकि हाॅब्स द्वारा मानव स्वभाव के चित्रण के सिलसिले में मनुष्य के कुछ महान गुणों का विवरण दिया गया होता, लेकिन हाॅब्स ने मनुष्य अथवा व्यक्ति को सदैव स्वार्थी, झगड़ालू , अहमवादी तथा महत्त्वकांक्षी माना है।

कुछ आलोचकों के बावजूद हाॅब्स के व्यक्तिवाद के महत्व को कम नहीं किया जा सकता। उसने राज्य के व्यक्ति को सन्मार्ग पर ले जाने के लिए एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न शासक की रचना की। उसने व्यक्तियों को कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में स्वतंत्रता और अधिकार प्रदान किया। उसका संपूर्ण राजनीतिक दर्शन व्यक्ति प्रधान हो जाता है। हम कह सकते हैं कि अपने जीवन में सदा भयभीत रहने वाले तथा सदैव सुरक्षा खोजते रहने वाले हाॅब्स ने अपने सिद्धांत की रचना व्यक्ति की ताने बाने से ही की है। इस दृष्टि से हाॅब्स एक महानतम व्यक्तिवादी है।

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