परिचय
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जो विश्व के किसी भी राष्ट्र में रहता हो, परंतु वह शांति से जीवन यापन करना चाहता है। संसार में समय-समय पर युद्ध होते रहते हैं, और फिर संधि व समझौते भी होते हैं। यह प्रक्रिया निरंतर चलती ही रहती है। परंतु मानव ह्रदय अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में स्थाई शांति की कामना रखता है। इसके लिए एक ऐसी संस्था का होना अति आवश्यक है, जो निष्पक्ष रुप से विभिन्न राष्ट्रों के विरोधी हितों के मध्य सामंजस्य स्थापित कर सके। इस प्रकार की विश्व संस्था का उदय क्षेत्रीय युद्धों से नहीं अपितु विश्व युद्धों से होता है। इस प्रकार की युद्ध वर्तमान समय तक तीन बार हो चुके हैं, और तीनों बार शांति स्थापना के प्रयास में संस्थाये बन चुकी हैं। नेपोलियन युद्ध के बाद पवित्र संघ ( Holy Alliance) ,प्रथम विश्व युद्ध के बाद राष्ट्र संघ ( League of Nation ) और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ( United Nation ) की स्थापना हुई।
राष्ट्र संघ का उदय
प्रथम विश्व युद्ध के समय सभी यह तीव्रता से अनुभव करने लगे थे, कि इन युद्धों का अंत व शांति की स्थापना हो। सितंबर 1915 में ब्रिटिश विदेश मंत्री सर एडवर्ड ग्रे नु अमेरिकन राष्ट्रपति विल्सन के व्यक्तिगत सहायक कर्नल हाउस को लिखा था कि ऐसा संघ बनाया जाना चाहिए, जो संधि भंग करने वाले और युद्ध के नियम तोड़ने वाले राष्ट्र का नियंत्रण कर सके। संपूर्ण विश्व में शांति व सुरक्षा की स्थापना के लिए 1916 में राष्ट्रपति विल्सन ने अपना संघ बनाने का विचार प्रस्तुत किया तथा प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर राष्ट्र संघ की स्थापना के लिए भरसक प्रयत्न किए। यहां तक कि उन्होंने इसे बनाने का सहयोग प्रदान करने के लिए ग्रेट ब्रिटेन जापान और फ्रांस की राष्ट्रीयता एवं आत्म निर्णय के सिद्धांत का विरोध करने वाली कई मांगे स्वीकार की। इसीलिए विल्सन को राष्ट्र संघ का धर्म पिता कहा जाता है।
विल्सन ने 8 फरवरी 1918 को एक 14 सूत्री कार्यक्रम विश्व के सामने प्रस्तुत किया, जिसके आधार पर एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के निर्माण पर जोर दिया गया। उन्होंने कहा कि ‘छोटे और बड़े दोनों ही प्रकार के राज्यों को राजनीतिक स्वतंत्रता और प्रादेशिक अखंडता की पारस्परिक प्रत्याभूतियां (guarantee) समान रूप से प्राप्त हो सके, इस प्रयोजन की पूर्ति के लिए कुछ विशिष्ट समझौतों के अंतर्गत राष्ट्रों के एक सामान्य संगठन का निर्माण किया जाना चाहिए।’ इस प्रकार राष्ट्र संघ एक सर्व प्रथम अंतर्राष्ट्रीय संगठन था, जो प्रथम विश्व युद्ध से उत्पन्न परिस्थितियों की उपज थी और उसका उद्देश्य स्थायी विश्व शांति की स्थापना करना था।
1 सितंबर 1918 को राष्ट्रपति विल्सन ने यह स्पष्ट घोषणा किया कि राष्ट्र संघ का विधान शांति समझौते का ही एक अंग होना चाहिए। पेरिस की शांति सम्मेलन में राष्ट्र संघ के संविधान को तैयार करने के लिए विल्सन की अध्यक्षता में 19 सदस्यों की एक आयोग की स्थापना की गई। उस आयोग में छोटे रास्ट्रों को भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिला। उक्त आयोग द्वारा 14 फरवरी 1919 को एक प्रस्ताव सम्मेलन के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जिसे 28 अप्रैल 1919 को कुछ संशोधनों के साथ स्वीकृत कर दिया गया। शांति संधियों की प्रथम 26 धाराओं में राष्ट्र संघ से संबंधित व्यवस्थाओं का ही वर्णन किया गया है।
राष्ट्र संघ के उद्देश्य
राष्ट्र संघ के मुख्य उद्देश्य थे –
(1) अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की स्थापना करना अर्थात न्याय और सम्मान के आधार पर अंतरराष्ट्रीय संबंधों की स्थापना करके आने वाले युद्ध को रोकना।
(2) विश्व की राष्ट्रों के मध्य भौतिक तथा मानसिक सहयोग को प्रोत्साहन देना, जिससे मानव जीवन सुखी हो सके।
(3) पेरिस शांति संधि को क्रियाशील कराना।
राष्ट्र संघ का स्वरूप
राष्ट्र संघ का विधान या समझौता ( covenant ) संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर से बहुत छोटा केवल 4000 शब्दों का था। इसमें एक भूमिका तथा 1 से 10 पैराग्राफ वाली 26 धाराएं थी। भूमिका में इसके उद्देश्यों की घोषणा करते हुए यह कहा गया कि इसके मुख्य लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना तथा अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को स्थापित करना है। इसकी प्रथम 7 धाराओं में इसकी सदस्यता के नियमों और संघ के विभिन्न अंगों का वर्णन है। 8वीं तथा 9वीं धारा में निशस्त्रीकरण का वर्णन है। 10वीं से 17वीं धारा तक विभिन्न झगड़ों के शांतिपूर्वक निर्णय, आक्रमणों को रोकने तथा सामूहिक सुरक्षा बनाए रखने के उपायों का प्रतिपादन है। 18 से 21 धाराओं में संधियों की रजिस्ट्री, प्रकाशन, संशोधन और वैधता का उल्लेख है। धारा 21 में मुनरो सिद्धांत की स्वीकृति तथा धारा 22 में शासनादेश की पद्धति का प्रतिपादन है। धारा 23 में संघ के सदस्यों द्वारा श्रमिक कल्याण, बाल कल्याण, नारी व्यापार निषेध, रोगों के नियंत्रण आदि के संबंध में किए जाने वाले कार्यों पर बल दिया गया है। धारा 24 में विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के राष्ट्र संघ के साथ संबंधों का वर्णन है। धारा 25 में रेडक्रास पर बल दिया गया है और धारा 26 में राष्ट्र संघ के समझौते में संशोधन करने की प्रक्रिया का उल्लेख है।
राष्ट्र संघ की सदस्यता
राष्ट्र संघ की स्थापना के प्रारंभ में 52 राष्ट्र सदस्य थे, किंतु बाद में इनकी संख्या 57 हो गई। इसमें तीन प्रकार के सदस्य थे – प्रथम इसके मौलिक सदस्य राष्ट्र थे, जिनकी संख्या 32 थी। द्वितीय आमंत्रित राष्ट्र जिनकी संख्या 13 थी। तृतीय, समझौता पत्र लागू होने के बाद बनाए गए सदस्य राष्ट्र 1 अप्रैल 1920 तक राष्ट्र संघ के 42 सदस्य राष्ट्र थे और 21 राष्ट्र बाद में इसमें सम्मिलित हुए।
राष्ट्र संघ के संविधान में यह व्यवस्था की गई थी, कि यदि कोई देश अंतरराष्ट्रीय दायित्व को स्वीकार करने, सैनिक शक्ति और शस्त्रों के संबंध में राष्ट्र संघ द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करने पर अपनी सहमति प्रकट करें तथा राष्ट्र संघ की सभा के सदस्य दो तिहाई मतों से उसे सदस्य बनाने के लिए अपनी सहमति प्रकट करें, तो उसे राष्ट्र संघ का सदस्य बनाया जा सकेगा। किसी भी सदस्य राष्ट्र को परिषद की सर्वसम्मति से अलग किया जा सकता था।
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