लाॅक के शासन संबंधी विचार

लॉक के राजदर्शन में राज्य एवं सरकार के मध्य स्पष्ट अन्तर किया गया है। उसने राज्य और सरकार को एक नहीं माना है। उसके अनुसार सामाजिक समझौते से राज्य का निर्माण होता है न कि सरकार का।

सरकार की स्थापना

लॉक के अनुसार सामाजिक समझौते के माध्यम से नागरिक समुदाय अथवा समाज की स्थापना हो जाने के बाद सरकार की स्थापना किसी समझौते द्वारा नहीं, बल्कि एक विश्वासजन्य न्यास (Trust) द्वारा हुई।

समाज तथा सरकार के पारस्परिक सम्बन्ध को सूचित करने के लिए लॉक ने संविदा(समझौता) के स्थान पर ट्रस्ट शब्द का प्रयोग इसलिए किया कि वह सरकार को समाज के अधीन रखना और इस बात पर जोर देना चाहता है कि सरकार जनहित के लिए स्थापित है और ट्रस्ट की अवहेलना करने पर सरकार को हटाया जा सकता है। लॉक के अनुसार राज्य एक समुदाय है जो लोगों के समझौते द्वारा संगठित किया जाता है, पर सरकार वह है जिसे यह समुदाय अपने कर्तव्यों को व्यावहारिक स्वरूप देने के लिए ट्रस्ट के रूप में निर्मित करता है। ट्रस्ट की स्थापना समुदाय के द्वारा अपने हित के लिए की गयी है, अतः सरकार का यह कर्तव्य है कि वह ट्रस्ट के अनुसार कार्य करे। यदि सरकार ट्रस्ट की मर्यादाओं का उल्लंघन करती है तो समुदाय को अधिकार प्राप्त है कि वह सरकार को भंग कर दे।

सरकार के कार्य

सरकार के कार्यों की चर्चा करते हुए लॉक ने कहा है कि, “मनुष्यों के राज्य में संगठित होने तथा अपने आपको सरकार के अधीन रखने का महान् एवं मुख्य उद्देश्य अपनी सम्पत्ति की रक्षा करना है।” यहां लॉक ने सम्पत्ति शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थों में किया है और उसकी सम्पत्ति की धारणा के अन्तर्गत जीवन तथा स्वतन्त्रता भी सम्मिलित है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन, सम्पत्ति तथा स्वतन्त्रता की रक्षा करने के लिए सरकार को तीन कार्य करने होते हैं। उसका प्रथम कार्य मानव जीवन को व्यवस्थित रखने और समस्त विवादों का निर्णय करने के लिए उचित-अनुचित, न्याय-अन्याय का मापदण्ड निर्धारित करना है अर्थात् प्राकृतिक कानून की सर्वमान्य व्याख्याएं प्रस्तुत करना है। यह कार्य सरकार के व्यवस्थापक अंग का है। सरकार का दूसरा कार्य एक ऐसी निष्पक्ष शक्ति की स्थापना करना है जो कि स्थापित कानूनों के अनुसार व्यक्तियों के पारस्परिक विवादों पर निर्णय दे सके। इसे हम सरकार का न्यायिक कार्य कह सकते हैं। सरकार का तीसरा कार्य है दूसरे समाजों तथा दूसरे नागरिकों से समाज तथा उसके नागरिकों के हितों की रक्षा करना। युद्ध की घोषणा, शान्ति स्थापित करना, दूसरे राज्यों से सन्धि करना व न्यायपालिका के निर्णयों को क्रियान्वित करना इसके अन्तर्गत आते हैं। इन्हें सरकार के कार्यपालिका कार्य कहा जा सकता है।

सरकार के अंग

लॉक ने प्राकृतिक अवस्था की तीन प्रमुख असुविधाओं (सुस्पष्ट नियम बनाने वाली, उन्हें पालन कराने वाली तथा नियमों का उल्लंघन करने वालों को निश्चित दण्ड देने वाली सत्ता) के अभाव के आधार पर नागरिक समाज में सरकार के तीन प्रमुख अंग माने हैं – (i) विधायिका, (ii) कार्यपालिका और (iii) संघीय शक्ति।

लॉक के अनुसार विधायिका सरकार का सर्वोच्च अंग है। इसे राज्य के हित में विधि निर्माण करने की शक्ति प्राप्त होती है। विधि के माध्यम से यह व्यक्तियों के उन प्राकृतिक अधिकारों की रक्षा करती है जिन्हें उन लोगों ने समझौतानुसार अपने पास रखे थे।

लॉक के अनुसार सरकार का दूसरा अंग कार्यपालिका को माना गया है। इसका प्रमुख कार्य विधायिका द्वारा निर्मित विधियों को लागू करना है। वह कार्यपालिका को विधि लागू करने के अतिरिक्त न्याय करने का भी अधिकार प्रदान करता है। वस्तुतः उसने न्यायपालिका को स्वतन्त्र अस्तित्व न प्रदान कर कार्यपालिका का ही अंग माना है।

लॉक के अनुसार शासन की तीसरी शक्ति संघीय शक्ति (Federative) है जिसका कार्य दूसरे देशों के साथ संधिया करना है और विदेश नीति सम्बन्धी पहलुओं पर ध्यान देना है।

शक्ति पृथक्करण

लॉक का कथन है कि इन तीन कार्यों (विधायी, कार्यपालिका तथा न्यायिक) के सम्पादन के लिए पृथक्-पृथक् गुणों और शक्तियों की आवश्यकता होती है, इसलिए इन शक्तियों तथा कार्यों में पृथक्करण होना चाहिए। उसने विधायिका तथा कार्यपालिका में स्पष्ट और अनिश्चित पृथकता स्वीकार की और कार्यपालिका को विधायिका के अधीनस्थ बनाया।

लॉक ने यह भी कहा कि कार्यपालिका का सत्र निरन्तर चलना चाहिए, लेकिन विधायिका के लिए ऐसी व्यवस्था का होना आवश्यक नहीं है। यद्यपि न्यायिक तथा कार्यपालकीय कार्यों में स्पष्ट भेद है तथापि लॉक ये दोनों ही कार्य एक ही अंग को सौंपने के लिए तैयार है क्योंकि ये दोनों अंग समाज की सशक्त शक्ति के आधार पर ही अपना कार्य कर सकते हैं। इस सम्बन्ध में हारमोन ने लिखा है : “लॉक के युग में न्याय का कार्य भी कार्यपालिका के अधीन जाता था, लॉक इसके लिए पृथक न्यायपालिका की व्यवस्था नहीं बताता। निस्सन्देह वह पृथक् तथा निष्पक्ष न्याय व्यवस्था का समर्थन करता है, परन्तु न्यायपालिका के पृथक्करण तथा स्वतन्त्रता के सिद्धान्त को नहीं मानता।”

सरकार के रूप

लॉक ने सरकार के रूपों का उल्लेख संक्षेप में ही किया है। वह सरकार के रूपों की अपेक्षा उन सिद्धान्तों को अधिक महत्व देता है, जिन पर सरकार आधारित हो। उसके अनुसार सरकार का स्वरूप इस बात पर निर्भर है कि बहुमत अथवा समुदाय अपनी शक्ति का किस प्रकार प्रयोग करना चाहता है।

वह सरकार के तीन विभिन्न रूपों का उल्लेख करता है। यदि समाज विधायिका शक्ति अपने ही हाथों में रखता है और स्वयं द्वारा निर्मित कानूनों को क्रियान्वित करने के लिए ही कुछ अधिकारियों की नियुक्ति करता है तो वह सरकार जनतन्त्रवादी है। यदि समाज अथवा बहुमत विधायी शक्ति को कुछ गिने-चुने लोगों एवं उनके उत्तराधिकारी को सौंप देता है तो वह सरकार वर्गतंत्री होती है और यदि व्यवस्थापन शक्ति एक व्यक्ति को दे दी जाती है तो वह सरकार राजतंत्रात्मक कहलाती है।

लॉक सामान्यतया जनतन्त्र का समर्थन करता है क्योंकि उसका विचार है कि जन इच्छा का सर्वाधिक श्रेष्ठ रूप में पालन जनतन्त्र में ही सम्भव है, परन्तु वह कोई जनतन्त्रवादी नहीं था, उसका विश्वास था कि संवैधानिक राजतन्त्र से उसका आशय है राज्य के प्रधान के रूप में सीमित शक्तियों वाला सम्राट हो, किन्तु विधायी और प्रशासनिक विषयों पर अन्तिम नियन्त्रण की शक्ति जन-प्रतिनिधियों को प्राप्त हो। 1688 ई. की गौरवपूर्ण क्रान्ति द्वारा इंग्लैण्ड में लगभग ऐसी ही व्यवस्था स्थापित की गयी थी।