मानव स्वभाव संबंधी विचार (views on human nature) machiavelli
मैकियावेली ने मानव स्वभाव को पतित और विकृत बताया है। उसके अनुसार मनुष्य चंचल, धोखेबाज, चंचल, लालची तथा संकट से बचने वाला होता है। वह अपने लाभ एवं स्वार्थों की पूर्ति के लिए दूसरों का साथ पकड़ता है। वह एक खास सीमा तक अपनी संपत्ति, जीवन, रक्त तथा बच्चों का बलिदान करता है, परंतु समय आने पर वह विद्रोह कर उठता है। मैकियावेली ने मानव प्रकृति या स्वभाव के बारे में ‘प्रिंस’ तथा ‘डिसकोर्सेज’ दोनों ग्रंथों में समान विचार दिए हैं।
मैकियावेली के अनुसार मनुष्य जन्म से ही दुष्ट और सर्वार्थी होता है। वह जो भी करता है, आत्म हित के लिए। वह लोभी होता है। उसमें कायरता और विश्वासघात की दुर्गुण होते हैं। वह पशु के समान बुराई की ओर अग्रसर होता है। अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए वह पाखंड करता है। वह पाप आचरण करता रहता है तथा स्वार्थों में लीन रहता है। वह अपने पिता की चिंता उतनी नहीं करता, जितनी वह संपत्ति की करता है। स्वयं मैकियावेली के शब्दों में “मनुष्य अपनी पैतृक संपत्ति की हानि की तुलना में अपने पिता की मृत्यु को अधिक सरलता से भूल जाता है।”
मैकियावेली ने राज्य और समाज में संघर्ष, प्रतियोगिता, शत्रुता और युद्ध का कारण मानव स्वभाव को बताया है। उसके शब्दों में “कुछ मनुष्य अधिक संपत्ति प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं, जबकि दूसरे मनुष्य अपनी संपत्ति के छिन जाने के भय से ग्रस्त रहते हैं, इन बातों से शत्रुता बढ़ती है और युद्ध होते हैं।”
मैकियावेली ने शासन सभा और राज्य के संदर्भ में दो शक्तियों का उल्लेख किया है – (1) प्रेम, (2) भय। इन दोनों शक्तियों के बारे में उसका कहना है कि मनुष्य स्वार्थी होने के कारण प्रेम के बंधन को कभी भी तोड़ सकता है, लेकिन वह भय के बंधनों से छुटकारा नहीं पा सकता। भय की जंजीरे काफी मजबूत होती हैं, जिन्हें तोड़ने का विचार मनुष्य में नहीं आता। अतः मैकियावेली ने कहा है कि “बुद्धिमान राजा को भय का सहारा लेना चाहिए।” भय शक्तिशाली राजा के हाथ की चीजें होती है, जबकि प्रेम उसके हाथ की चीज नहीं होती, क्योंकि इसके लिए उसे दूसरों पर निर्भर होना पड़ता है। मनुष्य अपनी स्वयं की इच्छा से प्रेम करते हैं, पर वह राजा की इच्छा से भयभीत होते हैं। अतः राजा को जनता में भय उत्पन्न करना चाहिए। मैकियावेली के शब्दों में “मनुष्य स्वभाव से ही दुस्ट और स्वार्थी होते हैं, वह केवल विवश होकर ही सद्व्यवहार करते हैं।” इस प्रकार हम देखते हैं कि मैकियावेली ने मनुष्य के स्वभाव या प्रकृति के संबंध में निराशावादी विचार(pessimistic views) दिए हैं।
मैकियावेली के मानव स्वभाव संबंधी विचारों की आलोचना
1) मैकियावेली की मानव स्वभाव संबंधी धारणा एकांगी है। वह केवल मानवीय कमजोरियों को ही देखता है, उसकी अच्छाइयों को नहीं, किंतु मानवीय स्वभाव में यह दोनों ही पहलू पाये जाते हैं। उसमें प्रबल स्वार्थ भी होता है और परोपकार की भावना भी।
2) मानव स्वभाव संबंधी मैकियावेली की धारणा इटली निवासियों तथा राजनीतिज्ञों के व्यवहारों के सर्वेक्षण पर आधारित है, जो कि सार्वभौमिक सत्य नहीं हो सकती। यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि क्योंकि इटली निवासी स्वभाव से बुरे हैं, इसलिए विश्व के समस्त नागरिक बुरे हैं। मैकियावेली की मानव स्वभाव संबंधी धारणा पूर्ण रूप से देश और काल पर आधारित तथा अत्यंत ही सीमित और संकुचित है। वह इटली को भ्रष्ट समाज का सजीव उदाहरण मानता है, किंतु इटली के दायरे से बाहर निकलकर मानव स्वभाव का अध्ययन नहीं करता।
3) मैकियावेली की मानव स्वभाव संबंधी धारणा अतार्किक और अवैज्ञानिक भी है। उसने मानव स्वभाव संबंधी दोषों को हाॅब्स की भांति मनोवैज्ञानिक व तार्किक आधार पर सिद्ध करने का प्रयास नहीं किया। वस्तुतः वह मानव स्वभाव का कोई क्रमबद्ध सिद्धांत प्रतिपादित नहीं करता है और इसी कारण वह यह नहीं बताता कि मनुष्य कैसे अच्छा बन सकता है।
4) मैकियावेली की यह धारणा भी अतिशयोक्तिपूर्ण है कि प्रशिक्षण द्वारा मानव स्वभाव में परिवर्तन या सुधार नहीं लाया जा सकता। यदि प्रशिक्षण द्वारा मानव की स्वार्थी प्रवृत्तियों को पूर्णतया परिवर्तित नहीं किया जा सकता, तो कम से कम उन्हें थोड़ा बहुत सुधारा तो अवश्य जा सकता है।
यद्यपि मैकियावेली का यह स्वभाव संबंधी विवेचन ऐसा लगता है, जैसे किसी निराशावादी सनकी ने अपने विचार संकुचित करके रख दिये हों। लेकिन, फिर भी यह तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि खुले रुप में जिन सिद्धांतों या नीतियों के कारण मैकियावेली की आलोचना की जाती है, उन्ही नीतियों और सिद्धांतों का गुप्त रूप से राजनीतिज्ञ और शासक अनुसरण करते हैं।